ज़िन्दगी का दस्तूर मैं अभी तक जान नहीं पाया
ये ज़िन्दगी कैसा खेल है में पहचान नहीं पाया
इस खेल के नियम अजीब है बहुत
किसी को मिले थोडा और किसी को मिले बहुत
कब क्या हो जाए ये नहीं पता लगा सकते
कल जो जीते आज भी जीत जाये ये कह नहीं सकते
कोई थोडा पाके भी खुश
तो कोई सब पाके भी नाखुश
अभी तो में इस खेल का नया खिलाड़ी हूँ
पर थोडा बहुत मैं भी इस खेल को समझने लगा हूँ
ज़िन्दगी के जीना का मज़ा वही ले पता है
जो इस खेल में हार कर भी खेलना चाहता है
-अवनीश गुप्ता
No comments:
Post a Comment