'वो मुलाक़ात'
वो
जगह नई थी
वो
माहौल ही था अलग
और मेरे चारो तरफ
था अनजाना अनजाना सा सब
एक
किसी अपने की तलाश थी बस
नज़र घुमाई तो एक
मायूसी सी छाई
फिर नाजाने वो
कहाँ से मेरे सामने आई
उसको देख
के बस दिल ने दिमाग से बार बार पुछा
तू है एक
हकीकत या फिर बस मेरा एक सपना
उसको
देखा तो ऐसा लगा सारा वक्त थम गया
और
ऐसे ही मेरा सारा वक्त गुज़र गया
क्या था
उसमे मैं पहचान नहीं पाया
एक
न जाने अजीब सा मुझ में जूनून आया
और
ज़िन्दगी जीने का एक पागलपन छाया
उसको
देख के ऐसा लगा मुझे दुनिया मिल गयी है
और ज़िन्दगी
क्यूँ
जीनी
है
इन
सवालों
के
जैसे
जवाब
मिल
गये
है
उसको
देख के ऐसा लगा मेरी ज़िन्दगी बदल गयी है
और
ज़िन्दगी वास्तव में है हसीन इस्सकी जैसे तसल्ली मिल गयी है
जानता
तो नहीं था उसे
फिर भी ऐसा लगा मुझे कहना है बहुत कुछ उसे
दिल से निकली बात पर होठों पे आके थम गयी
ऐसा लगा मेरी धड़कने और साँसें वही रुक गयी
फिरसे उसे बात करने की हिम्मत दिखाई
पर जैसे ही नज़र मिलाई एक अजीब सी हीच किचाहत सी आई
क्या
थी वो मैं आज तक नहीं समझ पाया
कौन थी वो मैं आज तक नहीं जान पाया
उन चन्द घड़ियों को
उन
बेताबियों के हसीन लम्हों को
उस
पहली और आखरी मुलाक़ात को
मैं
आज तक नहीं भुला पाया
मैं
आज तक नहीं भुला पाया
-
अवनीश गुप्ता