Thursday, 31 May 2012




'कुछ तो कमी है'



बेशख बैठा मैं उनके साथ ही हूँ
पर नजाने वहां मौजूद क्यूँ नहीं हूँ 
फिर लगा कुछ तो कमी है 
मेरे अन्दर एक अजीब सी हलचल मची हुई है 
अपनों के बीच  हूँ पर अपनापन  नहीं  है
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
नजाने क्या चल रहा है मेरे मन में 
बस यही जान ने की कोशिश में हूँ 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
महेनत तो बहुत करता हूँ 
पर उनके जैसी सफलता नहीं है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
ज़िन्दगी में पाया तो बहुत कुछ है 
पर वोह हासिल करने की ख़ुशी क्यूँ नहीं है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
ज़िन्दगी में करना तो बहुत कुछ है 
पर जो करता हूँ उस में दिलचस्पी नहीं  है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
रिश्ते नाते बहुतों से जोड़े है 
पर उन्न रिश्तों में मिठास नहीं है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
मुझे दोस्त तो बहुत कहते है 
पर उन्न दोस्तों की दोस्ती नहीं है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
उसको चाहता तो बहुत  हूँ 
पर नजाने क्यूँ सिर्फ चाहत है प्यार नहीं है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
देख तो बहुतकुछ  चूका हूँ 
पर अभी भी दुनिया देखि नहीं है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
लक्श्य भी है पाने का जूनून भी है 
पर उन्न तक रास्तें अभी साफ़  नहीं  है
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
सब कुछ  है तो ज़िन्दगी सही है 
कुछ  नहीं  है तो ज़िन्दगी यही है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है 
फिर लगा  कुछ तो  कमी है  

-अवनीश गुप्ता