धुआ धुआ सा छाया है मेरे चारो ओर
नजाने क्यूँ धुंधली सी है आज मेरी सोच
हवा में आज नमी कुछ अलग सी ही है
भयंकर तूफ़ान से आने के पहले की शान्ति जैसे फेली हुई है
अजीब सा ही मौसम छाया हुआ है मेरे मन पे
कभी दिखे सूर्य की किरणे
तो कभी चाँद क्या तारे भी न चमके
एक सांप जैसे लिपटा पढ़ा है मुझसे
चाहे तो अगली हरकत पर ही मुझको दस् दे
क्यूँ लग रहा है जैसे
ज़रूर कही किसी कोने में कुछ खतरनाक सा चल रहा है
मेरे खिलाफ कोई जैसे कुछ साज़िश रच रहा है
खुली हवा में सांस ले रहा हूँ
फिर भी घुटन महसूस कर रहा हूँ
और जैसे अपने एक डरवाने सपने को जी रहा हूँ
कल तक मेरे सामने ही थी मेरी मंजिल
फिर क्यूँ आज कही वो छिप गयी है
इस कोहरे के धुये में कही खो गयी है
लुका छुपी का खेल बचपन से खेलता रहा हूँ
अपने रास्ते से भटक आज गया हूँ
पर अभी न ही अपनी हिम्मत और न ही ये खेल हारा हूँ
ऐ मंजिल जा चुप ले जहाँ छुप सकती है
आजमा ले मेरा जोर
और लगा ले अपना जितना जोर तू लगा सकती है
बेश्ख मेरी नज़र से तू अभी छुप जाएगी
पर मेरे हौसले से तू न बच पायेगी
मेरे हौसले के आगे तू हार ही जाएगी
- अवनीश गुप्ता
nice poem avnish(there are some spelling mistakes), nice optimistic end!
ReplyDeletegazab ke shabd likhte hain aap
ReplyDeleteBeautiful...
ReplyDeleteThanks for supporting my post on indiblogger.....
Do land in my world some day...
http://apparitionofmine.blogspot.in/
beautifully written avanish,just hope you dont lose your track to success..best of luck:)
ReplyDeletePositivity is what is required to keep on moving in life.. Beautifully written...
ReplyDeleteA very Happy New Year to you ,Avanish..
Cheers
Odyzz