सूरज धीरे धीरे ढलने लगा है
एक अच्छे सफ़र का अंत अब दिखने लगा है
वक़्त में पिच्छे जाने का जी कर रहा है
सफ़र को दोबारा शुरुवात से तय करने को दिल जो मचल
रहा है
जब घर से चला था तो अकेला था
अपने साथ सिर्फ उमीदो के सहारे निकल पढ़ा था
पर लम्हा लम्हा उम्मीद से बढ़कर बीता
और मेरी यादों की तिजोरी में जुढ़ता चला
तिजोरी में कैद एक एक लम्हे की याद अमूल्य है
हर याद अपने आप में एक जैसे न देखा रत्न है
अंगिनत हीरे की चमक समान हसी के लम्हे है
तो कुछ समुंदर के मोती की तरह रोने के पल भी फस्से
है
सफ़र की अंतिम रेखा को देख कर अजीब सा लग रहा है
अरे अभी तो चालू किया था सफ़र ऐसा
लग रहा है
फिरसे लग रहा है जैसे घर को छोरके
जाना पढ़ रहा है
यहाँ बीती हर घटना को बार बार जीने का मन कर रहा है
और जो कुछ न आजमा सके उसका तजुर्बा
पाने का दिल कर रहा है
पर इस तिजोरी पे अब ताला लगाने
का वक़्त आ गया है
इस सफ़र को ख़तम करने का शरण आ गया
है
ज़िन्दगी की किताब में एक और पन्ना
भर गया है
और एक नए पन्ने को भरने का समय
आ गया है
आशा है तिजोरी में कैद रत्न हमेशा
चमकते रहेंगे
और आने वाले ज़िन्दगी के अनेक सफर्रो
में
रोशिनी फेलाते रहेंगे
रोशिनी फेलाते रहेंगे
- अवनीश गुप्ता
Awesome :)
ReplyDeletevery well written
ReplyDeletenyc :)
ReplyDeleteAwesome lines and beautifully expressed
ReplyDeletenice post
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