आज मुझे फिर से धोका मिल गया
ज़िन्दगी में एक सबक और सीख लिया
और ऐसा लगा सतरंगी ज़िन्दगी का एक और नय्या रंग देख लिया
तुम हो मेरे अपने लगता है सिर्फ एक भ्रम था मेरा
शायद पराये को अपना समझने का जैसे एक पाप था मेरा
वो कहते थे अनजान कभी अपनापन नहीं दिखा सकता
पर ज़िन्दगी के इस एक घटे वाक्य ने समझा दिया
दिखने को तो वो अनजान इंसानियत भी नहीं दिखा सकता
ज़िन्दगी सच में कभी सतरंगी इन्द्रधनुष लगती है
कभी कभी रुलाती है कभी कभी हसाती है
अपने सब रंग से वाकिफ होने से पहले फिर एक नय्या रंग दिखा जाती है
पर गौर करो तो अंत में समझ ही जाओगे
जिस तरह अलग अलग रंग के फूल कितने भी पसंद आये
और कितने भी आँखों को भाये
लगते अच्छे एक साथ एक गुलदस्ते में ही है
उस्सी तरह काँटें चाहए कितने भी नोकिल्ले लगे
पैरों में इन काँटों से पड़े छाले ही
दुःख के बाद सुख का एहसास दिलाते है
निराशा के बाद आशा की किरण जगाते है
ज़हन में बस के बार बार याद आते है
और इस रंग बिरंगी ज़िन्दगी का सफ़र रोमांचक बनाते है
- अवनीश गुप्ता
kya baat! kya baat!! kya baat!!!
ReplyDeletedhanyavaad...!!!
Deletereally enjoyed reading your poems..
ReplyDeleteit was nice..
i am glad you liked it. thank you.
Deletedear अवनीश जी ,
ReplyDeleteअच्छा लेखन ..
साधुवाद .....
डॉ. नीरज
http://achhibatein.blogspot.in/
nice piece of writing...!!
ReplyDeletethanx a lot Swati..
Deletenice piece of writing...!!
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