आज
मेरा फिरसे मन उब गया
इस
दुनिया की मोह माया से फिर मेरा मन उठ गया
और
एक लम्बे इन्तेकाल के बाद वापिस मेरा ऐसा जी कर गया
जो
अपना कलम उठाके एक नयी दुनिया बनाने का मन बन गया
और
अचानक मेरी सोच एक नए रस्ते पे चलने लगी
ऐसा
लगा ख्यालो की बारिश मेरे मन पर गिरने लगी
क्यूँकी
थी जो तस्वीर धुंधली वो भीनी भीनी सी अब दिखने लगी
अब
मैं उस तस्वीर को थोडा थोडा पहचानने लगा था
बेशक
आँखों से देख पा रहा था पर समझ नहीं आ रहा था
और
खुद ही से बार बार ये सवाल उठा रहा था
की
अवनीश तू कैसी तस्वीर बना रहा है जो खुद ही की सोच में उलझे जा रहा है
जैसे
जैसे समय का चक्र चलता गया
वैसे
ही तस्वीर का एक के बाद एक नया रंग निखरता गया
और
मुझे इस तस्वीर को देखने का नया पहलूँ मिलता गया
एक
बंद ताले की मुझे चाब्बी जैसे मिल ही गयी
और
इस तस्वीर की गुथी सुलझाने की मुझे एक तरकीब सूझ गयी
क्यूंकि
आँखों के साथ मेरे मन को भी ये तस्वीर दिख ही गयी
तस्वीर
बहुत खुबसूरत थी
कभी
न देखे रंगों के मेल से बनी थी
पर
मैंने सोचा, क्यूँ मेरी सोच से परे थी
फिर
आवाज़ गूंजी की गलती तो मेरी थी
मैंने
एक ऐसी तस्वीर बनाने की कोशिश करी थी
जो
हकीकत से मीलो दूर , बहुत दूर खड़ी थी
क्यूँकी,
यहाँ
सिर्फ हसी ही हसी थी
और
आसूओ की कमी थी
यहाँ
कोई दौड़ नहीं चल रही थी
जिसमे
सबको आगे निकलने की पढ़ी थी
क्यूँकी,
यहाँ
भूखे के नाम भी अन्न के दो दाने थे
और
बेघरो के भी ठिकाने थे
चारो
तरफ सिर्फ ख़ुशी के नजराने थे
क्यूँकी,
यहाँ
सिर्फ अमीर नहीं
गरीबो
का भी बोल बाला था
सिर्फ
पुरुष नहीं
नारी
को भी बराबर का दर्जा दिया जाता था
क्यूँकी,
हर
कोई नफरत जैसे लफ़्ज़ों से अनजाना था
हर
मानस एक दूसरे को अपना मानता था
कोई
यहाँ हथियार नहीं उठाता था
बस
एक दूसरे को प्यार से गले लगाता था
अब
आँखे खोली तो फिर वास्तविकता में आ गया
एकदम
से सनाटे को शोर ने भगा दिया
अपने
खयालों को किसी कोणे में मैंने छुपा दिया
इच्छाओं
को कही गहराई में दबा दिया
एक
और तस्वीर को मैंने अपने मन के कैनवास से मिटा दिया
और
ऐसे ही मैंने एक और तस्वीर को भुला दिया
और
ऐसे ही मैंने एक और तस्वीर को भुला दिया
-
अवनीश गुप्ता